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तालिबान में बढ़ती जा रही है अंदरूनी कलह

 

Taliban growing internal strife

अफगानिस्तान की सबसे कीमती धार्मिक निशानी पैगंबर मोहम्मद का एक खास लिबास है, ये कंधार के किरका शरीफ में रखा है. 4 अप्रैल 1996 को तालिबान का संस्थापक मुल्ला उमर किरका शरीफ पहुंचा, ये वो वक्त था, जब तालिबान समेत कई गुट अफगानिस्तान में जंग लड़ रहे थे, किरका शरीफ में मुल्ला उमर ने पैगंबर मोहम्मद के लिबास को हाथ में उठाया और भीड़ के सामने सीने से लगा लिया, इस नजारे को देखकर कुछ लोगों की भावनाओं का ज्वार ऐसा बहा कि वहीं बेहोश हो गए, इसके बाद से मुल्ला उमर को अमीर-उल-मोमनीन कहा जाने लगा, और वो निर्विवाद नेता बन गया. 


आज तालिबान हेबतुल्लाह अखुंदजादा को अमीर उल मोमनीन कहता है, लेकिन जिस अफगानिस्तान में अमीर-उल-मोमनीन बनने के लिए पैगम्बर मोहम्द का लिबास उठाना पड़े, वहां कोई किसी और को इतनी आसानी से अपने नेता कैसे मान लेगा? अफगानिस्तान में आज यही हो रहा है. तालिबान के काबुल पर कब्जा किए 15 दिन से ज्यादा हो चुके हैं, लेकिन अखुंदजादा अब तक सामने नहीं आया है और तालिबान में अंदरूनी कलह बढ़ती जा रही है

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